मंजिले आसां हो गयी उनके आने के बाद
अब तो जिन्दगी खिल गयी तेरा प्यार पाने के बाद
हर लम्हा फ़ना कर दिया है उनके लिए
किनारा मिल ही गया कश्ती को तूफां जाने के बाद
मेरी जिन्दगी मैं अपना प्यार ले कर वो इस तरह आये
जैसे पूनम का चाँद खिलता है अमावस के जाने के बाद
अब तो हक़ से कहेंगे वो हमारे ही हैं ,
घरोंदा बना ही लिया आखिर सारे तिनको को सजाने के बाद
इक फूल है इस बाग मैं अनोखा सा कहीं
सारे तो सही पर वो न मुरझाया शाम आने के बाद
मंजिले आसां.............
ABHAY JAIN
Thursday, December 8, 2011
हाँ मैं अब खुश नहीं रहता ,
कही कोई फिर से न रुला दे इसलिए अब हसना छोड़ दिया
कौन कहता है की लहरे आलिंगन करती है किनारों के संग ,
बस हवा लाती है ,
बापिस ले जाती है ..
चकोर को नहीं है प्यार चन्द्रमा से
वो तो बस यूँही चाँद के दाग की
जिज्ञासा लिए एकटक देखता रहता है....
मैं अब किनारों पर रेत के घरोंदे भी नही बनाता ,
क्या पता लहरे कब आये और खाक कर दे
ख्वाबो के आशियाने को ...
प्यार
इश्क
कोई चीज नही दुनिया मैं
जो स्वयम मैं पूर्ण नही , अपाहिज से लगते हैं ...
ABHAY JAIN
तेरा साथ है इसलिए खुश हूँ
तू पास है इसलिए खुश हूँ
राहों में चलते चलते मंजिल का पता न था ...
तूने रास्ता बताया इसलिए खुश हूँ..
यादों की बस्तियों को खाक कर चुका था मैं ....
वो घरोंदे फिर बस गये इसलिए खुश हूँ..
पहले मेरे आंसू की कोई कीमत न थी ...
अब तुझे बुरा न लगे इसलिए खुश हूँ ..
मैं तो बिखर गया था कांच के टुकडो सा
तुने उन्हें फिर संवारा इसलिए खुश हूँ
--
ABHAY JAIN
तू पास है इसलिए खुश हूँ
राहों में चलते चलते मंजिल का पता न था ...
तूने रास्ता बताया इसलिए खुश हूँ..
यादों की बस्तियों को खाक कर चुका था मैं ....
वो घरोंदे फिर बस गये इसलिए खुश हूँ..
पहले मेरे आंसू की कोई कीमत न थी ...
अब तुझे बुरा न लगे इसलिए खुश हूँ ..
मैं तो बिखर गया था कांच के टुकडो सा
तुने उन्हें फिर संवारा इसलिए खुश हूँ
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ABHAY JAIN
मैं ढूँढता हूँ ,तन्हा किनारों पर परिंदों सी ख़ुशी
उनके जैसा पानी में हिलोरे संग तैरना
फिर उड़ जाना हवा के संग .........
पहाड़ो में वृक्ष सा साहसी भी बनना चाहता हूँ,
झूमना चाहता हूँ बिना डोर की पतंग सा
नीले आसमान में...........
उन घरोंदो को बनाना चाहता हूँ
जो महल बन जाते हैं
खुशियों के आने पर .............
मैं उस अनुभव को भी लेना चाहता हूँ
जो समाया रहता है
चेहरे की झुर्रियों में.....
पहाड़ो सी बाधाओं को किनारे कर
गंगा सा बहना भी चाहता हूँ ....
हाँ मैं हर पल को जीना चाहता हूँ...............
--
ABHAY JAIN
उनके जैसा पानी में हिलोरे संग तैरना
फिर उड़ जाना हवा के संग .........
पहाड़ो में वृक्ष सा साहसी भी बनना चाहता हूँ,
झूमना चाहता हूँ बिना डोर की पतंग सा
नीले आसमान में...........
उन घरोंदो को बनाना चाहता हूँ
जो महल बन जाते हैं
खुशियों के आने पर .............
मैं उस अनुभव को भी लेना चाहता हूँ
जो समाया रहता है
चेहरे की झुर्रियों में.....
पहाड़ो सी बाधाओं को किनारे कर
गंगा सा बहना भी चाहता हूँ ....
हाँ मैं हर पल को जीना चाहता हूँ...............
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ABHAY JAIN
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