Friday, May 17, 2013

तूफ़ा में भी चरागों को जलाये बैठे हैं 
यूँही उनके आने की आस लगाये बैठे हैं 
कही जल्द शाम न हो जाये इस दोपहर के बाद 
इसीलिए सूरज से रिश्ता बनाये बैठे हैं 
सपनो में तो कई बार आते देखा हमने उनको 
आज नींद को कोशो दूर भुलाये बैठे हैं 
कश्ती भी तन्हा झूम रही है लहरों के संग 
किनारे भी उसके आने की आस लगाये बैठे हैं