तूफ़ा में भी चरागों को जलाये बैठे हैं
यूँही उनके आने की आस लगाये बैठे हैं
कही जल्द शाम न हो जाये इस दोपहर के बाद
इसीलिए सूरज से रिश्ता बनाये बैठे हैं
सपनो में तो कई बार आते देखा हमने उनको
आज नींद को कोशो दूर भुलाये बैठे हैं
कश्ती भी तन्हा झूम रही है लहरों के संग
किनारे भी उसके आने की आस लगाये बैठे हैं
यूँही उनके आने की आस लगाये बैठे हैं
कही जल्द शाम न हो जाये इस दोपहर के बाद
इसीलिए सूरज से रिश्ता बनाये बैठे हैं
सपनो में तो कई बार आते देखा हमने उनको
आज नींद को कोशो दूर भुलाये बैठे हैं
कश्ती भी तन्हा झूम रही है लहरों के संग
किनारे भी उसके आने की आस लगाये बैठे हैं