अजीब सी तरंगे जब आकाश में दैदीप्यमान होती हैं
तो लगता है के वो कोई अपना है जो अब नीलभ में अनेक सितारों की संगत करने लगा है,
मैं तुम्हे सब सितारों में कैसे ढ़ूँढ लूं,
तुम्हारी साँसे बस आनी जानी बन्द हुई हैं
तुम आज भी जिंदा हो मेरे मनमष्तिक में
मेरे हृदय में मेरे रोम रोम में,
बस भौतिकता की कमी खलती है
आभासी दुनिया में प्रतिबिम्बित उस छवि को जब कल कल बहती नदी में निहारता हूँ तो दिखती है दमकती छवि, मुस्कान और शायद तुम भी ।
तो लगता है के वो कोई अपना है जो अब नीलभ में अनेक सितारों की संगत करने लगा है,
मैं तुम्हे सब सितारों में कैसे ढ़ूँढ लूं,
तुम्हारी साँसे बस आनी जानी बन्द हुई हैं
तुम आज भी जिंदा हो मेरे मनमष्तिक में
मेरे हृदय में मेरे रोम रोम में,
बस भौतिकता की कमी खलती है
आभासी दुनिया में प्रतिबिम्बित उस छवि को जब कल कल बहती नदी में निहारता हूँ तो दिखती है दमकती छवि, मुस्कान और शायद तुम भी ।
तुम हो तो लेकिंन अब तुम तुम नही रहे ।।
कहां हो ?
कहां हो ?
अभय जैन 'आकिंचन'