Friday, July 1, 2016

अजीब सी तरंगे जब आकाश में दैदीप्यमान होती हैं
तो लगता है के वो कोई अपना है जो अब नीलभ में अनेक सितारों की संगत करने लगा है,
मैं तुम्हे सब सितारों में कैसे ढ़ूँढ लूं,
तुम्हारी साँसे बस आनी जानी बन्द हुई हैं
तुम आज भी जिंदा हो मेरे मनमष्तिक में
मेरे हृदय में मेरे रोम रोम में,
बस भौतिकता की कमी खलती है
आभासी दुनिया में प्रतिबिम्बित उस छवि को जब कल कल बहती नदी में निहारता हूँ तो दिखती है दमकती छवि, मुस्कान और शायद तुम भी ।
तुम हो तो लेकिंन अब तुम तुम नही रहे ।।
कहां हो ?
अभय जैन 'आकिंचन'

Tuesday, April 12, 2016

यहीं कोई 59-60 साल उम्र होगी उनकी,
इस उम्र में कोई सहारा नही मिला होगा तभी लोगो की
जूठी प्लेट उठाने का काम करते हैं ,
अभी कुछ देर पहले का वाकया है ,
मैं एक रेस्टोरेंट में खाना खा रहा था, वो जो उम्र के इस पड़ाव में अपने पेट भरने का सहारा उसी जगह से बनाए हुए थे ,
हाथों 4 बटर मिल्क की ट्रे लिए हुए 3 सीडी चड़ कर देने जा रहे थे,
लोग रिश्ते निभाने में अक्सर फिसल जाते हैं ,वो तो आखिर ढलती उम्र के पैर थे , एकदम से फिसले और बटर मिल्क जा गिरा चार उन लोगों पर जिनकी रगों में नया खून अभी कुछ साल पहले बहना चालू हुआ है।
अगर वो मिल्क उसके किसी परिवार वाले पर गिरा होता तो उतना उग्र न होता जितना उसकी प्रेमिका के ऊपर गिरने पर हुआ ,
देखते ही देखते उसने उनकी गिरेवान को पकड़ा और चंद गालियों से अपने खोखले रुतवे को प्रेमिका सामने दिखा दिया
संस्कारों और आदर की हत्या हो चुकी थी ,
वो दादा जी अपने किये पर पछताए भी और हाथ जोड़ कर माफी भी मांगी , आखिर वो नही चाहते थे के उनका वो आखिरी सहारा भी छिन जाये जिससे उन्हे दो जून की रोटी नसीब होती है ।
ये है युवा शक्ति जो अपना गुरुर सिर्फ छद्म रुतबे को जताने के लिए सब कुछ कर सकता है ।
मैं कुछ न कर सका , बात न बड जाये तो स्वघोषित कायर समझ लौट आया अपनी जगह।
अभय जैन "आकिंचन"

Friday, May 17, 2013

तूफ़ा में भी चरागों को जलाये बैठे हैं 
यूँही उनके आने की आस लगाये बैठे हैं 
कही जल्द शाम न हो जाये इस दोपहर के बाद 
इसीलिए सूरज से रिश्ता बनाये बैठे हैं 
सपनो में तो कई बार आते देखा हमने उनको 
आज नींद को कोशो दूर भुलाये बैठे हैं 
कश्ती भी तन्हा झूम रही है लहरों के संग 
किनारे भी उसके आने की आस लगाये बैठे हैं

Friday, October 19, 2012


written on 16/july/2009
वो तेज हवाएं कुछ देर की होती हैं ..
वो बहारों की फिजाये कुछ देर की होती हैं ...
हमें तो निभाना होता है खुद ही अपने फर्जो को ..
दूसरो की दुआए कुछ देर की होती हैं ..
प्यारा लगा है लहरों का किनारों से मिलना ..
पर ये हसीं घटाए कुछ देर की होती हैं ...

Wednesday, August 22, 2012

mansoon special..


वो भटकती बारिश की बूँद ने पत्तो को फिर हरा कर दिया ..
यूँही मुश्कराहट भरे आंसुओ की एक बूँद तो दे दे.....!!
मैं नहीं हूँ लालची तुझे हर वक़्त पाने का
वो पल जिसमे तू मेरी है वो कीमती पल तो दे दे.....!!
मेरी खामोशियो ने कोहराम मचा दिया होगा तेरे दिल में .
उन धडकनों को थोडा आराम तो दे दे.......!!
आवारा लहरे किनारों संग कई रिश्ते बना कर चली गयी
किनारे अब भी ताक में है इस रिश्ते का कोई नाम तो दे दे ....!!

Sentiments