Thursday, December 8, 2011

मैं ढूँढता हूँ ,तन्हा किनारों पर परिंदों सी ख़ुशी
उनके जैसा पानी में हिलोरे संग तैरना
फिर उड़ जाना हवा के संग .........
पहाड़ो में वृक्ष सा साहसी भी बनना चाहता हूँ,
झूमना चाहता हूँ बिना डोर की पतंग सा
नीले आसमान में...........
उन घरोंदो को बनाना चाहता हूँ
जो महल बन जाते हैं
खुशियों के आने पर .............
मैं उस अनुभव को भी लेना चाहता हूँ
जो समाया रहता है
चेहरे की झुर्रियों में.....
पहाड़ो सी बाधाओं को किनारे कर
गंगा सा बहना भी चाहता हूँ ....
हाँ मैं हर पल को जीना चाहता हूँ...............

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ABHAY JAIN

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